प्रेगनेंसी के दूसरी तिमाही के अंतिम महीने में गर्भ में पल रहे शिशु के मूत्र से गर्भ में रहे पानी की मात्रा बढ़ती है। ऐसे में अगर बच्चे के शरीर में कोई किडनी या मूत्रमार्ग से लगती कोई समस्या है तो गर्भ में पानी की कमी हो सकती है।
अगर प्रेग्नेंट महिला कम पानी पीती है या प्रेगनेंसी में पानी की कमी की कमी उनके शरीर में हमेशा रहती है तो पेट में पल रहे शिशु के विकास में बाधा आती है।
कभी कभी गर्भावस्था के दौरान गर्भ की थैली यानी की पानी की थैली (झिल्ली) फटने से भी गर्भ में पानी की कमी यानि की एमनॉयटिक द्रव की कमी हो जाती है।
गर्भाशय में महिला के प्लेसेंटा में किसी भी प्रकार की खामी या समस्या से खून के बहाव शिशु तक अच्छे से नहीं पहुंच पाता है जिससे एमनॉयटिक द्रव और शिशु के पेशाब के पुनरावृति पर भी असर होता है।
किसी महिला को गर्भावस्था के दौरान पानी की थैली में छिद्र हो जाता है। जिससे एमनॉयटिक द्रव रिसने लगता है और प्रेगनेंसी में पानी की कमी होने लगती है।